kanchan singla

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कांच का एक टुकड़ा हूं मैं

कांच का एक टुकड़ा हूं मैं
टूट कर कहीं बिखरा हूं मैं
लफ्जों पर नहीं ठहरा हूं मैं
दिल में कहीं दफन गहरा हूं मैं
खामोशी से गुजरा हूं मैं
सन्नाटों से बिखरा हूं मैं
टूटे हुए लम्हों में रहता हूं मैं
तन्हाइयों से रिश्ता रखता हूं मैं
एक कांच का टुकड़ा हूं मैं
चुभा तो घाव गहरा हूं मैं
ढ़लते दिन सा हूं मैं
गुजरती शामों सा कहीं थमा हूं मैं
वफाओं की सुबह सा हूं मैं
किसी के दर्द से गुजरा हूं मैं
कांच का एक टुकड़ा हूं मैं
जब जब बिखरा हूं मैं
कई हिस्सों में बंटा हूं मैं
अब मेरा हिस्सा भी नहीं हूं मैं
टूट कर इस कदर बिखरा हूं मैं
खुद में सिमटा हूं मैं
एक छोटा सा कांच का टुकड़ा हूं मैं
औरों का अक्स हूं मैं
आसमां का शफ़क़ हूं मैं
पानी का रक्स का हूं
कांच का एक टुकड़ा हूं मैं ।।


- कंचन सिंगला ©®

लेखनी प्रतियोगिता -21-Jul-2022


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11 Comments

Khan

25-Jul-2022 10:08 PM

Nice

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Rahman

24-Jul-2022 11:09 PM

👏👏👏

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Saba Rahman

24-Jul-2022 11:40 AM

Osm

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